Wednesday, February 6, 2008

धक्का - मुक्की का खेल

भारतीय धक्के संसार में प्रसिद्ध है.
अपने यहा के आदमी, महिलायें,जानवर तो एक दूसरे को धक्के मारते ही है,बेजान चींजे भी धक्का मारती है. धक्के हमारे जीवन की संजीवनी है.धक्के न लगे तो जीवन की गाड़ी रुक जाती है. धक्को की बड़ी अहमियत है और बड़प्पन भी है. धक्को की राजनीति में भी धक्के है धरम का भी धक्का है करम का भी धक्का.यहा तो लोग बातो-बातो में बातों का धक्का लगाते है टका में टका और धका में धका लगता है.पैदा होने का भी धक्का लगता है. इतने प्रकार के धक्के है की धक्का खाते-खाते सारी जिंदगी निकल जाती है.संसार से धकियाये गए तो स्वर्ग या नरक पहुच जाते है फिर वहा से धक्का खाकर वापस पृथ्वी पर आ जाते है तथा फिर धक्को का क्रम चलता रहता है.धक्का खाते-खिलाते,धक्का देते-दिलाते इतने माहिर हो गए है की विश्व ओलम्पिक में अगर धक्का मार प्रतियोगिता हो तो हम प्रथम स्थान पर आकर स्वर्ण हासिल कर सकते है. अपने यहाँ धक्के भी लगते है,मुक्के भी लगते है.धक्क-मुक्की भी होती है और धक्कम-धक्का भी होता हैऔर.यहाँ ऐसे-ऐसे धक्के लगते है,धकापेल होती है कि देखनेवाला हक्का-बक्का रह जाये. धन के धक्के,तन के धक्के,बालाओं के बला से अदाओं के धक्के,मेलों-ठेलों के धक्के,सिफारिश के धक्के,बातों के धक्के आदि इतने प्रकार के तथा बहुआयामी धक्के है कि इन धक्को से बच पाना कठिन होता है. बनारस के लिए कहावत प्रशिद्ध थी कि-”रांड,सांड,सीढ़ी,सन्यासी इनसे बचे सो सेवै काशी.” विश्वनाथ जी की नगरी में जो इन चार प्रकार के धक्को को झेल जता था वह भाग्यशाली हुआ करता था.

मेलो के धक्के सभी ने खाए होगे, मेलों और धक्को का चोली दामन का साथ है. बिना धक्को के मेलों की कल्पना
भी नही की जा सकती.अपने यहाँ घरो मैं रोज धक्कम -धक्का होता है.घरवाले मैं अगर कूवत नही है तो घरवाली ही उसे घर से धक्का मार के निकाल देती है.कभी घर वाला भी अपनी घर वाली को धक्का देकर निकाल देता है.
राजनीति का धक्का बड़ी अहमियत रखता है.राजनीति का धक्का बड़ा अदृश्य होता है. कभी-कभी यह धक्का लगने से मंत्रिपद मिल जाता है और कबी-कभी छीन जाता है.इन धक्को से कई अधमरे हो जाते है और कई राजनैतिक रूप से मरे हुए भी जिंदा हो जाते है. सौ-सौ धक्के खाकर भी तमाशा घुस के देखने के इच्छुक रहते है.
धरम के धक्के भी खूब लगते है.धरम के धक्के लगवाने के लिए लोग लालायित रहते है. कुछ साधू-सन्यासी लोग चिलम पीते हुए कहा करते है-” चिलम,तमाखू,हुक्का, लगा धरम का धक्का.” धक्को से कोई नही बच सका है.
धन का धक्का सबसे प्रबल होता है.धन का धक्का जहा लगता है,रास्ते अपने आप साफ हो जाते है.धनवानों के पास धन धक्का खाते हुए अपने आप आता है और गरीबों को धन का धक्का लगता है तो और भी गरीब हो जाते है.
मीठे धक्के खाना हो तो बला-सी बलाये के धक्के खाइए। बालाएं जब धक्का लगाती तो कितना मीठा लगता है और जब धक्का देकर निकलती है. तो डूब मरने की स्थिति आ जाती है .

बालाओं के शरीर के धक्के तो गजब ढाते ही है,उनकी नथुनियाँ के धक्के तो कमाल के होते है.अब यों ही देखिये एक बाला की झुलनियां के धक्को से उसका प्रियतम कलकत्ता पहुंच गया. गजब की रही होगी वह बाला भी और कितना सधा हुआ बेहतरीन रहा होगा उसकी झुलानियों का धक्का. दिल की मार भी इतनी लाजवाब नही रही होगी. यह गौर करने लायक बात है कि झुलानियों से धक्का लगाने वाली ललना कितनी एक्सपर्ट रही होगी कि उसने इतने अंदाज से सही हार्स पॉवर सही कोंणीय वेग से धक्का लगाया कि उसका बलमा ठीक कलकत्ता पहुच गया और कही रास्ते में नही गिरा.
इश्क का जबर्दस्त धक्का लगता है.इश्क से दिल का संबंध है तो दिल में धक्के लगते है.धक्को से कभी दिल मिलते है तो कभी दिल टूटकर टुकडे-टुकडे होते है,दिल पर अटैक पड़ते है.अपने यहा इश्क धीरे-धीरे नही होता, धक्के के साथ होता है, और इश्क का धक्का लगा तो सीधे ब्याह और बच्चे हो जाते है. ग़ालिब को भी इश्क के धक्के ने निकम्मा कर दिया था-”इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.” कुछ को इश्क का धक्का ऐसा लगता लगता है कि घर में ही क्रिकेट की टीम तैयार कर बैठते है.